दिसंबर 1903 में अंग्रेजों द्वारा बंगाल विभाजन की सार्वजनिक घोषणा की गई। इसका उद्देश्य बंगाल में बढ़ती हुई राष्ट्रीयता को तोड़ना था। उस समय बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का सबसे प्रमुख केंद्र बन कर उभर रहा था । विभाजन के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल किया गया। पहला भाषा के आधार पर और दूसरा धर्म के आधार पर । बंगाल में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदाय के लोग रहा करते थे। पश्चिमी बंगाल हिंदू बाहुल्य क्षेत्र था और पूर्वी बंगाल मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र। इस प्रकार अंग्रेजों द्वारा धर्म के आधार पर दोनों संप्रदायों को बांट दिया गया। इस प्रकार संप्रदाय वाद को जगा कर अंग्रेज स्वतंत्रता आंदोलन को दुर्बल बनाने का प्रयास कर रहे थे। लॉर्ड कर्जन ने पूर्वी बंगाल को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र जानकर ढाका को राजधानी का प्रस्ताव दिया था।
जुलाई 1905 में बंगाल विभाजन की घोषणा की गई। इसके तुरंत बाद पूरे बंगाल में विरोधी स्वर उठने लगे पूरे बंगाल में ही विरोध सभा आयोजित हुई और इन्ही सभाओं में सबसे पहले विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का निर्णय लिया गया। 7 अगस्त 1905 को बंगाल विभाजन के विरोध में कोलकाता के टाउन हॉल में एक आयोजन किया गया। जहां पर स्वदेशी आंदोलन आरंभ करने की घोषणा हुई और विदेशी कपड़ों और लिवरपूल के नमक का बहिष्कार करने का आग्रह किया गया। 16 अक्टूबर 1905 को जब बंगाल विभाजन लागू कर दिया गया। यह दिन शोक दिवस के रूप में मनाया गया । इस दिन लोगों ने वंदे मातरम गीत गाया और गंगा में स्नान किया। इसके बाद वंदे मातरम गीत स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख गीत बन गया। शीघ्र ही यह आंदोलन बंगाल से निकलकर पूरे भारत में फैल गया।
सन 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में दो प्रस्ताव पारित किए गए। पहला लॉर्ड कर्जन की नीतियों एवं बंगाल विभाजन की आलोचना करना दूसरा बंगाल में बंगाल विभाजन के विरुद्ध अभियान चलाना एवं स्वदेशी आंदोलन चलाना। कांग्रेस के इस अधिवेशन में नरम पंथियों एवं गरम पंथी के मतभेद खुलकर सामने आने लगे। नरमपंथीयों का मत था की विरोध प्रदर्शन संविधान के दायरे में रहकर किया जाए एवं इंग्लैंड में भारतीयों का शिक्षित भारतीयों का ऐसा जनमत तैयार करें, जो कि अंग्रेज सरकार पर बंगाल विभाजन का निर्णय वापस लेने को दबाव डाल सकें। जबकि गरम पंथीयों का मत था की आंदोलन स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन बंगाल तथा पूरे देश में तेजी से फैलाया जाए और इसे राष्ट्रव्यापी आंदोलन का स्वरूप दिया जाए।
धीरे-धीरे उदार वादियों ग्राम पंक्तियों के बीच मतभेद बढ़ने लगे जिसके परिणाम स्वरूप सूरत अधिवेशन 1907 में कांग्रेस दो भागों में विभक्त हो गई।
सन 1911 में क्रन्तिकारी आंदोलन के भय से बंगाल विभाजन रद्द कर दिया गया। साथ ही भारत की राजधानी बंगाल से हटा कर दिल्ली स्थापित कर दी गई।
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